रचनाकार

…बेटी सिर्फ बेटी है उसे बेटी रहने दो

मेरी कलम से…
आनन्द कुमार

प्लीज,
बस करो रहने दो,
इसे क्षत्रिय समाज से मत जोड़ो,
इसे फारवर्ड, बैकवर्ड मत बनाओ,
दलित, अति दलित भी नहीं,
रहने दो नेताओं के बोल को,
दी है बेटी समाज को गाली,
आखिर ऐसा क्यों,
बेटी तो हर कोख की दुलारी है।
एक बात और,
बेटी पर राजनीति मत करना,
इसे धर्म और जाति मत समझना,
वोटों की गुणा-गणित से दूर रहने दो,
क्योंकि बेटियां तो सबकी राजदुलारी हैं।
जिसने भी बोला हो बेटी पर,
जिसने भी ललकारा है बेटी को,
वह भूल बैंठे हैं कि यही बेटियां,
दुर्गा, लक्ष्मी और काली हैं,
जो पूजी जाती हैं रोज घरों में,
मां के आंचल व बाप के सायों में,
और जब यह होती हैं बाल रूप में,
तो यही तो परी कहलाती हैं।
अल्लाह के इबादत के लिए,
बेटियां सजदा करती हैं घर को,
भगवान जो पूजते हैं आंगन में,
बेटियां ही तो गीत गाती हैं।
ईशा मसीह जब जन्म लेतें हैं बड़ा दिन को,
ये बेटियां ही उनका चर्च संजाती हैं।
सिख जो निकलते हैं दर से अपने,
ये बेटियां ही मुस्कुरा कर विदा करती हैं।
यह देश है बेटियों का,
प्लीज इसकी साख को ना छेड़ो,
आंखों में शर्म रखो, दिल में रखो हया,
बेटी किसी की हो, अपशब्द उसे ना बोलो।
प्लीज अपशब्द उसे ना बोलो।।

…बेटी सिर्फ बेटी है उसे बेटी रहने दो।

वर्ष 2016 की रचना

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