घोसी में गेम चेंज व गेम ओवर होना तय!
@आनन्द कुमार…
आख़िरकार वही हुआ जिसका डर था, कांग्रेस और वामपंथ के बाद पहली बार घोसी लोकसभा सीट पर बसपा का परचम लहराने वाले और भूमिहार व राजपूत के बाद, पहली बार चौहान समाज से सांसद बन बालकृष्ण चौहान ने कांशीराम व मायावती के निर्देशन में घोसी को एक नई दिशा दी थी, जिसके बाद घोसी के सियासत की तस्वीर बदली तो बदलती रह गई! जो वर्तमान सांसद अतुल राय को छोड़ अब तक बदस्तूर जारी है!
अब चुकि बसपा के पूर्व सांसद पुन: कांग्रेस छोड़ बसपा का दामन थाम लिए हैं, इसके पहले भी वे सपा में भी कुछ दिन का सेवा दे चुके हैं! बालकृष्ण चौहान द्वारा दल बदल तो टिकट के लिए ही किया गया होगा स्वाभाविक रूप से सोचा और समझा जा सकता है!
बालकृष्ण चौहान अपने समाज में मऊ में ही नहीं पूरे पूर्वांचल सहित प्रदेश के बाहर के क्षेत्रों में अपने समाज का चेहरा हैं, वे भले ही उम्र के ढलान पर हों लेकिन चौहान समाज के लिए परिचय के मोहताज नहीं हैं! राजनीति पर अच्छी पकड़ रखते हैं, और शिक्षा के क्षेत्र में जुटे हैं।
कांग्रेस से जुटे थे कि इण्डिया गठबंधन से अगर घोसी लोकसभा का उम्मीदवार बनने का मौक़ा मिला तो राजनीति में कुछ अलग कर सकते हैं! लेकिन घोसी की सीट सपा के खाते में गई और उनका सपना चकनाचूर हो गया। भाजपा में दाल गलती नहीं, सपा में पहले से ही चौहान समाज के दिग्गज नेताओं की भीड़ है, सो एक ही घर ख़ाली लगा, वह भी अपना और पुराना लगा और चल दिए, बसपा मुखिया मायावती से मुलाक़ात किए और फ़ोटो वायरल कर दिया। अब चर्चा पहले से था, कि बालकृष्ण चौहान या उनका बेटा बसपा से आ सकता है, एक बार और बल मिल गया।
ऐसे बसपा की सीटिंग सीट पर अगर बसपा ने बालकृष्ण चौहान या बेटे के नाम पर यह नया गेम खेला तो, घोसी में गेम चेंज व गेम ओवर होना तय है! किसका होगा, यह जानने के लिए इन्तज़ार करना होगा!
अब बालकृष्ण चौहान को बसपा सुप्रीमो मायावती हाथी की सवारी देती हैं कि नहीं यह तो इंतज़ार करना होगा। या फिर अन्य किसी नाम पर विचार करती हैं! लेकिन अगर हाथी थोड़ा भी झूमी तो फिर ज़ीरो वाली हाथी कहीं ब सपा न हो जाए यह सोचना होगा!