चर्चा में

स्वदेशी जागरण मंच के स्वयंसेवकों नें ब्रह्मस्थान, सहादतपुरा एवं काली मंदिर, मुंशीपुरा में किया “दीपदान”

मऊ। आओ मिट्टी के दीये जलायें कार्यक्रम के अंतर्गत स्वदेशी जागरण मंच मऊ के स्वयंसेवकों नें ब्रह्मस्थान, सहादतपुरा एवं काली मंदिर, मुंशीपुरा में “दीपदान” किया एवं वहां उपस्थित जनमानस से चाइनीज झालर, दीपकों का बहिष्कार एवं स्वदेशी दीपक जो हमारे कुम्हार भाइयों ने़ बनाया है उसका उपयोग करने के लिए जनजागरण किया। इस कार्यक्रम में स्वदेशी जागरण मंच एवं अपने विचार परिवार के बहुत से कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
शनिवार को भी पावर हाउस स्थित श्री राम मंदिर एवं हनुमान मंदिर पर सायं छः बजे “दीपदान” का कार्यक्रम हुआ। विचार परिवार के कार्यकर्ता एवं स्वयंसेवको की उपस्थिति रही।
वक्ताओं ने कहा कि हम हर साल दिवाली मनाते हैं। हर घर, हर आंगन, हर बस्ती, हर गांव में सबकुछ रोशनी से जगमगा जाया करता है। आदमी मिट्टी के दीए में स्नेह की बाती और परोपकार का तेल डालकर उसे जलाते हुए भारतीय संस्कृति को गौरव और सम्मान देता है क्योंकि दीया भले मिट्टी का हो मगर वह हमारे जीने का आदर्श है।

हमारे जीवन की दिशा है, संस्कारों की सीख है, संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुंचने का माध्यम है। दीपावली मनाने की सार्थकता तभी है जब भीतर का अंधकार दूर हो। भगवान महावीर ने दीपावली की रात जो उपदेश दिया उसे हम प्रकाश पर्व का श्रेष्ठ संदेश मान सकते हैं।
भगवान महावीर की यह शिक्षा मानव मात्र के आंतरिक जगत को आलोकित करने वाली है। तथागत बुद्ध की अमृत वाणी ‘अप्पदीवो भवः’ अर्थात आत्मा के लिए दीपक बन वह भी इसी भावना को पुष्ट कर रही है। दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का अनूठा पर्व है।
एक समय था जब दिवाली मे हर घर मे मिट्टी से बने दिये ही जलाये जाते थे। जिससे दिया बनाने वाले कुम्हारो का पुश्तैनी काम भी आसानी से चल रहा था लेकिन अब इस आधुनिक युग मे दियो का स्थान विदेशी सामान जैसे झालर, मोमबत्ती आदि ने ले लिया है। जिसके कारण कुम्हारो का अपने पुश्तैनी काम से मोह भंग हो रहा है नतीजा कुम्हार परिवार आथिर्क तंगी के मुहाने पर खड़ा है। कुम्हार के परिवार के युवा तो पहले ही इस काम को टाटा कह चुके थे और अब घर के बुजुर्ग भी कन्नी काट रहे है।मिट्टी के बर्तन , दिये बनाने मे अब कठिनाईयो का सामना करना पड़ा रहा है। मिट्टी तो जैसे तैसे करके मिल जाती है लेकिन मिट्टी से बने सामान को पकाने के लिए ईधन नही मिल पा रहा है। ईधन मे सबसे महत्वपूर्ण गोबर के उपले जरूरी है -जो आसानी से नही मिल रहे। और यदि अगर मिलते भी है तो ज्यादा कीमत देने पर ! जिसके कारण बनाये गये मिट्टी के सामानों की लागत ज्यादा हो जाती है। जिससे खरीददार कम मिलते है।वैसे एक बात और भी है कि अब मिट्टी के बर्तन की मांग पहले जैसी नही रही है।
आओ क्यों न इस दिपावली स्वदेशी मिट्टी से बने दिये का उपयोग करे।

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