गुदड़ी के लालों ने किया कमाल, आज भी पिता बेचते हैं अखबार
कितना अच्छा है न कि सपने देखने के पैसे नहीं लगते वर्ना सिर्फ अमीर ही बड़े-बड़े सपने देख पाते.वो सपने ही थे जिन्होंने एक अखबार बेचने वाले पिता को आज पूरे देश में पहचान दिलाई है.जब इन सपनों को अशोक कुमार कुश्वाहा जी रहे थे. तो उनको भी ये उम्मीद कम ही थी कि एक दिन उनके सारे सपने पूरे हो जाएंगे.लेकिन मजबूरियों को मात देकर उन्होंने अपने ख्वाब को हमेशा जिंदा रखा. और उन्हीं उम्मीदों का नतीजा है कि आज वो बड़े गर्व से ये कह सकते हैं कि उनके बेटे पुलिस अधीक्षक,डॉक्टर और प्रोफेसर हैं. गाजीपुर के जखानियां के रहने वाले अशोक कुमार कुश्वाहा ने खुद भले ही 12वीं तक पढ़ाई की लेकिन अपने बेटों की शिक्षा के लिए उन्होंने हर मुश्किलों और मजबूरियों का डटकर सामना किया. अशोक कुमार के ऊपर परिवार की बड़ी जिम्मेदारी थी लेकिन अखबार बेचकर और ग्रामीण पत्रकारिता के जरिये उन्होंने ना सिर्फ अपने सपनों को पूरा किया बल्कि अपने बच्चों केे भी सपनों को पूरा करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी.
हम आपको बता दें कि अशोक कुमार कुशवाहा के बड़े बेटे जहां छत्तीसगढ़ में पुलिस अधीक्षक के पद पर हैं. वहीं उनके दूसरे बेटे एमबीबीएस एमडी कर बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त हैं. जबकि उनका तीसरा बेटा सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैदराबाद के शिलांग कैंपस में फ्रेंच भाषा विभाग में फैलोशिप प्रोफेसर हैं.
जहां एक तरफ अशोक कुमार ने आर्थिक जिम्मेदारियों को बखूबी संभाला वहीं दूसरी पास उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी ने घर की जिम्मेदारियों को संभालते हुए. अपने बच्चों को हमेशा आगे बढ़ने और अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से जीने की सीख दी.मां-बाप से मिली सीख ने बच्चों को हमेशा हौसला दिया. गरीबी और मजबूरी उनके रास्ते का रोड़ा जरूर बनीं. लेकिन उनके बुलंद हौसलों का हिला ना सकीं.और भला हिला भी कैसे पाती जब उन्होंने हर कीमत पर अपने पिता के सपनों को पूरा करने का मन बना लिया था.
अशोक कुमार के सबसे बड़े बेटे संतोष कुमार सिंह ने हाईस्कूल और इंटर की शिक्षा हासिल करने के बाद बीएचयू से बीएएमएस किया और फिर जेएनयू से एमफील, पीएचडी करने के बाद साल 2011 में लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की. फिलहाल वो छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात हैं. वहीं अशोक कुमार के दूसरे बेटे शैलेंद्र कुमार सिंह ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद नीट की परीक्षा पास की और फिर कानपुर के मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया. अब वो इसी कॉलेज में MD बाल रोग विशेषज्ञ में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं. अपने भाइयों की तरह धर्मेंद्र सिंह ने जवाहर नवोदय विद्यालय में से इंटर की पढ़ाई पूरी की और जेएनयू,दिल्ली से बीए और एमए करने के बाद एमफिल की पढ़ाई पूरी की. अब वो अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, शिलांग मे असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं.
तीनों बच्चों ने जो मुकाम हासिल किया वहां तक पहुंचना आसान नहीं था. ना सिर्फ पिता ने बल्कि बच्चों ने भी कड़ी मेहनत की. इस दौरान तमाम तरह की दिक्कतें आईं लेकिन किसी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. पढ़ाई के लिए पैसों की दिक्कत और घर की बढ़ती जिम्मेदारियों के बीच जिंदगी आसान नहीं थी. लेकिन कड़ी मेहतन और निरंरतर प्रयास से वो लगातार आगे बढ़ते गएं.
अशोक कुमार के तीनों बेटे उम्र में लगभग एक समान थे. इसलिए बच्चों की पढ़ाई के खर्च लिए पैसे भेजने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. अशोक कुमार बताते हैं कि पैसे की कमी होने की वजह से बच्चों को इकट्ठे पैसे ना भेजकर हफ्ते हफ्ते पैसे भेजते थे. जिससे कभी कभी बच्चे भी विचलित हो जाते थे कि पिताजी हम खर्च कैसे चलाएं लेकिन अशोक जी ने अपने खर्चे को कम करके 7 दिन के अंतराल पर पैसे भेजते रहे और आज वह मुकाम हासील हुआ. आज भी अशोक जी की सादगी वैसी की वैसी बनी हुई है. कुछ समाचारपत्रों के एजेंसी के साथ ही एक बड़ी संख्या में अखबार स्वयं बांटते हैं.
अब अशोक कुमार के तीनों बेटों की ये उपलब्धियां ना सिर्फ जिले के बल्कि प्रदेश और देश के नौजवानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है. लोग अपने बच्चों को उनसे सीख लेने की नसीहत देते हैं.अशोक कुमार कुशवाहा उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी के त्याग और परीश्रम का ही नतीजा है कि आज संतोष,शैलेंद्र और धर्मेंद्र सफलता के शिखर पर हैं.
Story By-श्रीराम जायसवाल, मऊ